Chhatrapati Sambhaji Maharaj : भारतीय इतिहास के उन योद्धा-शासकों में से हैं, जिन्होंने मुगल साम्राज्य की ताकत को चुनौती देकर स्वराज्य की अलख जगाई। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे। उनका जीवन शौर्य, कूटनीति, और अंततः बलिदान की एक गाथा है, जो भारत के स्वाभिमान की प्रेरणा बनी।
क्या आप जानते हैं कि अपने 9 साल के शासन में संभाजी ने कुल 127 लड़ाइयां लड़ी थी और उनमें से उन्होंने एक भी युद्ध नहीं हारे थे, भारतीय इतिहास में अपने शासनकाल में किए गए युद्धों में संपूर्ण युद्ध जीतने वाले एकमात्र शाषक थे हमारे प्रिय पूज्य Chhatrapati Sambhaji Maharaj
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प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म और बाल्यकाल:
- Chhatrapati Sambhaji Maharaj का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले (महाराष्ट्र) में हुआ। उनकी माता सईबाई (शिवाजी की पहली पत्नी) थीं, जिनका देहांत संभाजी के दो वर्ष की आयु में हो गया।
- उनका पालन-पोषण शिवाजी की माता जीजाबाई और पिता शाहजी भोसले के संरक्षण में हुआ।
- शिक्षा और संस्कार:
- Chhatrapati Sambhaji Maharaj को बचपन से ही युद्धकला, संस्कृत, फारसी, और मराठी भाषा का ज्ञान दिया गया।
- उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही “बुधभूषणम्” नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना की, जो नीति और राजधर्म पर आधारित है।
- शिवाजी ने उन्हें प्रशासनिक और सैन्य प्रशिक्षण दिया, जिससे वे कम उम्र में ही युद्धनीति में निपुण हो गए।
सत्ता संघर्ष और राज्याभिषेक
- शिवाजी के देहांत के बाद का संकट:
- 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, Chhatrapati Sambhaji Maharaj के सौतेले भाई राजाराम को सिंहासन पर बैठाने का षड्यंत्र रचा गया। उनकी सौतेली माता सोयराबाई और मंत्री माधवराव ने संभाजी को पन्हाला किले में कैद कर दिया।
- संभाजी ने 1681 में कैद से भागकर रायगढ़ किले पर कब्जा किया और खुद को छत्रपति घोषित कर दिया।
- राज्याभिषेक:
- 20 जुलाई 1680 को उनका औपचारिक राज्याभिषेक हुआ। इस दौरान उन्होंने “छत्रपति” की उपाधि धारण की और मराठा साम्राज्य की कमान संभाली।
शासनकाल: चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ
- मुगलों से संघर्ष:
- Chhatrapati Sambhaji Maharaj के शासनकाल में मुगल सम्राट औरंगजेब ने दक्षिण भारत पर कब्जा करने की महत्वाकांक्षा जताई।
- वाई का युद्ध (1687): संभाजी ने मुगल सेनापति मुकर्रब खान को हराया, लेकिन बाद में मुगलों ने रामसेज (रायगढ़) किले पर घेरा डाला।
- संघर्ष की नीति: संभाजी ने “घेरा और भागो” (Guerrilla Warfare) की रणनीति जारी रखी, जिससे मुगल सेना को भारी नुकसान हुआ।
- पुर्तगालियों और अंग्रेजों से टकराव:
- उन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ गोवा पर हमला किया और अंग्रेजों को बॉम्बे (मुंबई) में चुनौती दी।
- संधि और विश्वासघात: Chhatrapati Sambhaji Maharaj ने पुर्तगालियों के साथ समझौता किया, लेकिन बाद में पुर्तगालियों ने मुगलों से हाथ मिला लिया।
- प्रशासनिक सुधार:
- उन्होंने कृषि, व्यापार, और सेना को मजबूत किया।
- नौसेना का विस्तार: शिवाजी की तरह संभाजी ने भी समुद्री किलों को सुरक्षित रखा।
गिरफ्तारी और वीरगति
- संगमेश्वर में धोखा:
- फरवरी 1689 में, Chhatrapati Sambhaji Maharaj अपने मंत्री कवि कलश के साथ संगमेश्वर (महाराष्ट्र) में ठहरे थे। एक स्थानीय सरदार गनोजी शिर्के ने मुगलों को उनकी मौजूदगी की सूचना दे दी।
- औरंगजेब के सेनापति मुकर्रब खान ने उन्हें घेर लिया और बंदी बना लिया।
- अमानवीय यातनाएँ:
- Chhatrapati Sambhaji Maharaj और कलश को अहमदनगर ले जाया गया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन संभाजी ने इनकार कर दिया।
- उन्हें अंधा करने, जीभ काटने, और त्वचा उधेड़ने जैसी यातनाएँ दी गईं।
- बलिदान:
- 11 मार्च 1689 को Chhatrapati Sambhaji Maharaj और कलश को तुंगा नदी के किनारे क्रूरता से मार डाला गया। उनके शव को टुकड़ों में काटकर जानवरों को खिला दिया गया।
- यह घटना मराठों के लिए प्रेरणा बनी और उन्होंने “संभाजी की मृत्यु का बदला” लेने का संकल्प लिया।
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विरासत और ऐतिहासिक महत्व
- मराठा पुनरुत्थान:
- Chhatrapati Sambhaji Maharaj की मृत्यु के बाद, उनके भाई राजाराम और बाद में ताराबाई ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा।
- 18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य पुनः शक्तिशाली बना और भारत में मुगल प्रभुत्व को समाप्त कर दिया।
- सांस्कृतिक योगदान:
- संभाजी ने संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहित किया। उनकी रचना “बुधभूषणम्” आज भी प्रासंगिक है।
- उन्हें “धर्मवीर” और “कविराज” की उपाधियों से सम्मानित किया जाता है।
- राष्ट्रीय प्रतीक:
- महाराष्ट्र में संभाजी को स्वाभिमान और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
- उनकी समाधि तुलापुर (महाराष्ट्र) में स्थित है, जहाँ हर साल उनकी जयंती मनाई जाती है।
ऐतिहासिक बहस और पुनर्मूल्यांकन
- कुछ ब्रिटिश और मुगल इतिहासकारों ने संभाजी को “अयोग्य” और “अत्याचारी” बताया, लेकिन आधुनिक शोधों ने इन आरोपों को निराधार साबित किया है।
- मराठी साहित्य और लोकगीतों में उन्हें “शिवाजी का सच्चा उत्तराधिकारी” कहा गया है।
निष्कर्ष
127 युद्धों में से सभी 127 युद्ध को जीतने वाले श्री संभाजी महाराज का जीवन भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। आज भी उनकी वीरता और दृढ़ संकल्प युवाओं को राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देते हैं। “जय भवानी, जय शिवाजी, जय संभाजी!”