Chhatrapati Shivaji Maharaj: कहानी है17वीं सदी के भारत की: जब एक युवा मराठा ने साम्राज्यवाद की नींव हिला दी, जिसने मुगल बादशाह औरंगजेब के विशाल सेना और अपार शक्ति को हिला के रख दिया, शिवाजी महाराज एक शासक नहीं बल्कि लोगो की भावनाओं और हौसलों को शीर्ष पर ले जाने वाले अवतरित हिंदू सम्राट थे ,
आज बात करेंगे उस शासक की जिसको पढ़ने के बाद आप गर्वित महसूस करेंगे कि आप भारत जैसी योद्धाओं की भूमि पर जन्म लिया है।
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Chhatrapati Shivaji Maharaj प्रस्तावना
17वीं सदी में भारत मुगल साम्राज्य के प्रभुत्व के दौर से गुजर रहा था। औरंगजेब जैसे शासकों की महत्वाकांक्षाओं के बीच, एक युवा योद्धा ने दक्कन की पहाड़ियों से स्वराज्य का बिगुल बजाया—Chhatrapati Shivaji Maharaj। उनकी वीरता, रणनीतिक दूरदर्शिता, और मुगलों के साथ संघर्ष ने न केवल मराठा साम्राज्य की नींव रखी, बल्कि भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में उन्हें अमर कर दिया।
Chhatrapati Shivaji Maharaj: माता जिजाऊ और स्वराज्य का सपना
Chhatrapati Shivaji Maharaj का जन्म 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ। उनकी माता जिजाबाई ने उन्हें रामायण-महाभारत के आदर्शों और शिवाजी के पिता शाहजी भोसले की सैन्य विरासत से प्रेरित किया। गुरु समर्थ रामदास के आध्यात्मिक मार्गदर्शन और दादोजी कोंडदेव की प्रशासनिक शिक्षा ने उन्हें एक समर्पित योद्धा और कुशल रणनीतिकार बनाया।
- 16 वर्ष की उम्र में पहला सैन्य साहस: 1646 में तोरणा दुर्ग पर कब्जा करके शिवाजी ने स्वराज्य की नींव रखी।
- विजयगढ़ और रायगढ़: इन दुर्गों को उनके सामरिक महत्व के कारण मराठा शक्ति का केंद्र बनाया गया।
मुगलों से टकराव: शौर्य और चतुराई की मिसाल
- अफजल खान का अंत (1659):
बीजापुर के सेनापति अफजल खान ने Chhatrapati Shivaji Maharaj को मारने की योजना बनाई, लेकिन प्रतापगढ़ की घाटी में शिवाजी ने ‘वाघ नख’ (बाघ के पंजे) से उसका वध कर दिया। यह घटना मराठा शक्ति के उदय का प्रतीक बनी। - शाइस्ता खान की हार (1663):
औरंगजेब के मामा शाइस्ता खान ने पुणे पर कब्जा किया, पर Chhatrapati Shivaji Maharaj ने रातोंरात छापामार हमला कर उसकी उंगलियाँ काट दीं। यह मुगलों के लिए बड़ा अपमान था। - सूरत की लूट (1664):
मुगलों की आर्थिक नस काटने के लिए Chhatrapati Shivaji Maharaj ने सूरत के समृद्ध बंदरगाह पर हमला किया, जो मुगल व्यापार का केंद्र था।
मुगलों के साथ संधि और किले से पलायन: छल से लड़ाई
1665 में, मुगल सेनापति जयसिंह ने पुरंदर की संधि के तहत Chhatrapati Shivaji Maharaj को 23 दुर्ग सौंपने को मजबूर किया। 1666 में, औरंगजेब ने शिवाजी को अग्रा बुलाया, जहाँ उन्हें नजरबंद कर दिया गया। शिवाजी ने मिठाई की टोकरियों में छिपकर भागने की योजना बनाई—एक ऐसा पलायन जो उनकी चतुराई का प्रतीक बना।
छत्रपति का राज्याभिषेक (1674): स्वराज्य की स्थापना
6 जून 1674 को रायगढ़ दुर्ग में शिवाजी ने ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। यह केवल एक समारोह नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास में स्वाधीन हिंदू राज्य की पुनर्स्थापना थी। उन्होंने प्रशासन में ‘अष्टप्रधान’ परिषद बनाई और न्यायप्रिय शासन स्थापित किया।
औरंगजेब की जिद और शिवाजी की विरासत
औरंगजेब ने दक्कन को जीतने के लिए 27 वर्ष तक संघर्ष किया, पर शिवाजी की मृत्यु (1680) के बाद भी मराठा शक्ति बढ़ती रही। शिवाजी के पुत्र संभाजी और बाद में पेशवाओं ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।
रणनीतियाँ जिन्होंने इतिहास बदल दिया:
- गनिमी कावा (गुरिल्ला युद्ध): छापामार हमलों से मुगलों को अस्त-व्यस्त किया।
- दुर्गों का जाल: 300+ किलों का निर्माण, जिनमें से प्रत्येक संचार और रक्षा का केंद्र था।
- नौसेना का विकास: अरब सागर में मराठा नौसेना ने यूरोपीय शक्तियों को चुनौती दी।
विरासत: एक अमर प्रेरणा
शिवाजी का चरित्र केवल युद्ध तक सीमित नहीं था। उन्होंने स्त्रियों की इज्जत और सभी धर्मों के प्रति सम्मान का संदेश दिया। आज भी, ‘शिवाजी महाराज’ भारतीय जनमानस में स्वाभिमान और रणकौशल के प्रतीक हैं। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें “राष्ट्रनिर्माता” कहा, तो महात्मा गांधी ने उनकी लोककल्याणकारी नीतियों की प्रशंसा की।
समापन विचार:
शिवाजी का संघर्ष सिर्फ मुगलों के खिलाफ नहीं, बल्कि अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध था। उनकी गाथा हमें सिखाती है कि साहस और बुद्धिमत्ता से कोई भी चुनौती असंभव नहीं। जैसा कि मराठी कवि कुसुमाग्रज ने लिखा—“शिवाजी न होता, तो इतिहास अधूरा होता।”