Nawab Alivardi Khan: बंगाल के एक कुशल शासक का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है जिसको पढ़ने के बाद आपको अलीवर्दी खान के शासन और दूरदर्शिता से भली भांति परिचित होंगे, आपको विदित हो कि इसके शाशनकाल में बंगाल को स्वर्ग कहा जाता था क्योंकि इसने अंग्रेजों को कर देना बंद कर दिया था जिससे उस समय का बंगाल बहुत ही समृद्ध हो गया था। तो आइए जानते हैं विस्तार से —–
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परिचय:
नवाब अलीवर्दी खान (1671–1756) 18वीं शताब्दी के मध्य में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के नवाब थे। उनका शासनकाल (1740–1756) ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शक्ति के उदय से ठीक पहले का समय था। Nawab Alivardi Khan को एक कुशल प्रशासक, न्यायप्रिय शासक और सैन्य रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने अपने समय की जटिल चुनौतियों का सामना किया।
Nawab Alivardi Khan का प्रारंभिक जीवन और उदय
- जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:
अलीवर्दी खान का जन्म 1671 में दक्कन (वर्तमान तेलंगाना) में एक अफ़गान परिवार में हुआ। उनके पिता मीर मुहम्मद मदनी मुगल सेना में अधिकारी थे। - मुगल सेवा में प्रवेश:
युवावस्था में वे मुगल साम्राज्य की सेवा में शामिल हुए और बिहार के गवर्नर शुजा-उद-दीन मुहम्मद खान के अधीन कार्य किया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर शुजा-उद-दीन ने उन्हें अपना दीवान नियुक्त किया। - सत्ता प्राप्ति:
1740 में, अलीवर्दी खान ने तत्कालीन नवाब सरफराज खान को गिरिया के युद्ध में पराजित कर बंगाल की गद्दी हासिल की। इस विजय के बाद मुगल सम्राट मुहम्मद शाह ने उन्हें औपचारिक रूप से नवाब मान लिया।
Nawab Alivardi Khan के शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ
- मराठा आक्रमण (बर्गी हमले):
- 1742 से 1751 तक मराठा सेना ने बंगाल पर बार-बार हमले किए, जिन्हें “बर्गी हमले” कहा जाता है।
- अलीवर्दी खान ने कूटनीति और सैन्य शक्ति का संयोजन कर 1751 में मराठों के साथ सुलहनामा किया, जिसके तहत उन्हें चौथ (कर) देने पर सहमति बनी।
- इन हमलों से बंगाल की अर्थव्यवस्था और जनजीवन को भारी क्षति हुई।
- यूरोपीय कंपनियों से संबंध:
- अलीवर्दी खान ने ब्रिटिश और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनियों को व्यापारिक सुविधाएँ दीं, लेकिन उनके किलेबंदी के प्रयासों का विरोध किया।
- उन्होंने कलकत्ता और चंद्रनगर में यूरोपीय फौजी गतिविधियों पर नियंत्रण रखने का प्रयास किया।
Nawab Alivardi Khan का प्रशासनिक और सांस्कृतिक योगदान
- राजधानी का स्थानांतरण:
उन्होंने राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद स्थानांतरित किया, जो रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। - आर्थिक नीतियाँ:
- कृषि और व्यापार को बढ़ावा देकर राज्य की आय में वृद्धि की।
- मराठों को चौथ देने के बावजूद, उन्होंने किसानों पर अत्यधिक कर नहीं लगाया।
- सांस्कृतिक संरक्षण:
- मुर्शिदाबाद को साहित्य, कला और वास्तुकला का केंद्र बनाया।
- उनके दरबार में फारसी और बंगाली विद्वानों को संरक्षण मिला।
- न्याय व्यवस्था:
अलीवर्दी खान न्याय के प्रति समर्पित थे। कहा जाता है कि वे स्वयं जनता की शिकायतें सुनते थे और त्वरित निर्णय लेते थे।
Nawab Alivardi Khan का उत्तराधिकार और विरासत
- अलीवर्दी खान के कोई पुत्र नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपने दौहित्र सिराज-उद-दौला को उत्तराधिकारी घोषित किया।
- 9 अप्रैल 1756 को उनकी मृत्यु के बाद सिराज-उद-दौला ने गद्दी संभाली, लेकिन आंतरिक विद्रोह और ब्रिटिशों से संघर्ष (प्लासी का युद्ध, 1757) के कारण बंगाल में सिराजुद्दौला के शासन का अंत हुआ और मीर जाफर को गद्दी पर बिठाया गया, ध्यातव्य हो कि मीर जाफर की गद्दारी की वजह से ही सिराजुद्दौला की हार हुई थी।
ऐतिहासिक महत्व
अलीवर्दी खान का शासन बंगाल में स्थिरता और समृद्धि का अंतिम दौर माना जाता है। उनकी नीतियों ने हालाँकि अंग्रेजों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, क्योंकि उनके उत्तराधिकारी यूरोपीय शक्तियों की चुनौतियों का सामना नहीं कर सके। फिर भी, उनका न्यायप्रिय शासन और सांस्कृतिक योगदान भारतीय इतिहास में उल्लेखनीय हैं।
निष्कर्ष:
नवाब अलीवर्दी खान एक दूरदर्शी शासक थे, जिन्होंने अपने समय की जटिल राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना किया। उनका जीवन और शासनकाल भारत के उस संक्रमणकालीन दौर की गाथा कहता है, जब देश नए औपनिवेशिक युग की ओर बढ़ रहा था।